Would you like to receive Push Notifications?
We promise to only send you relevant content and give you updates on your transactions
Blogs Blog Details

How to generate your free kundli in mins

28 Jan, 2024 by Admin

काल सर्प योग व दोष एवं निवारण  

शिव पुराण के अंतर्गत उमासहिंता के बत्तीसवे अध्याय में कश्यप ऋषि की पत्नियों व संतानों की वंशावली में नागवंश का जिक्र मिलता है जिसमे वर्णन है की कश्यप ऋषि की अदिति ,दिति ,सुरसा ,अरिष्टा,इला ,दनु,सुरभि ,विनता ,ताम्रा ,क्रोधवशा,खशा,कद्रू एवं मुनि नाम की पत्नियाँ थी जिसमे से देवी सुवासा से आकाशचारी हजारों महात्मा सर्प उत्पन्न हुए जिनमे शेष ,वासुकी ,तक्षक ,ऐरावत ,महापद्म ,पद्म ,कर्कोटक ,सुमुख ,महानील , धनञ्जय , पाणी इत्यादि सर्पों में प्रधान राजा हुए !

काल सर्प दोष से तात्पर्य है समय रुपी सर्प के दोष से उत्पन्न दोष जो हमारे पूर्व जन्म व पूर्वजों के द्वारा किये गए शुभाभुभ कर्मों का फल हमें प्रदान करता है , प्रायः यदि ज्योतिष के ग्रन्थों का अवलोकन करे तो ज्ञात होता है की सभी महान प्राचीन ज्योतिष आचार्यों ने सात ग्रहों को ही फलित ज्योतिष का मुख्य विषय बनाया व राहू केतु को छायाग्रह की संज्ञा दी है इसलिए इनका प्रभाव भी परोक्ष रूप से पड़ता है ,और इनके स्वाभाव को देखें तो विद्वानों ने राहू का स्वाभाव शनि के समान व केतु का मंगल के समान माना है , जैसा की आप सभी को पौराणिक कथा से ज्ञात होगा की राहू व केतु एक ही शरीर के दो भाग है जिसमे राहू सिर व केतु धड है अतः राहू विचार शक्ति का प्रतीक है व स्वयं क्रिया करने में असमर्थ है अतः जिस भाव में वह बैठेगा व जिस भावेश के साथ बैठेगा उस ग्रह को अपनी विचार शक्ति से प्रेरित कर क्रिया करवाएगा ठीक इसी प्रकार केतु स्वयं विचार करने में असमर्थ है तो वह जिस भी ग्रह से संबंधित होगा उसकी विचार शक्ति से कार्य करेगा , इसलिए यह दोनों ग्रह विभिन्न परिस्थितियों में शुभ से शुभ व अशुभ से अशुभ फल प्रदान करने में समर्थ होते हैं , अब समझते हैं की जन्म कुंडली में कालसर्प का निर्माण कैसे होता है , सबसे पहले यह जानना जरूरी है की राहू केतु हमेशा वक्र गति से चलते हैं अतः जब कुंडली में राहू से केतु के बीच सभी ग्रह आ जायें तभी काल सर्प दोष बनेगा जबकि केतु से राहू के मध्य यदि ग्रह आये तो यह योग नही बनेगा

ज्योतिष की 12 राशियों के आधार पर यह मुख्य रूप से 12 प्रकार का माना गया है जिनके नाम व प्रभाव इस प्रकार है

अनंत काल सर्प योग – यह योग लग्न से लेकर सप्तम भाव के मध्य बनता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक कुशाग्र बुद्धि संपन्न ,उच्च कुल में विवाह व सामाजिक प्रतिष्ठा को प्राप्त करने वाला होता है जबकि अशुभ फल दायी होने पर प्रतिष्ठा हीन व असामजिक कार्यों में लिप्त होने वाला व असफल वैवाहिक जीवन वाला होता है !

कुलिक काल सर्प योग – यह योग द्वितीय भाव से अष्टम स्थान के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक असमान्य रूप से गुप्त कार्यों से धन कमाता है व अशुभफलदायी होने पर अचानक से भारी धन हानि व स्वास्थ्य हानि करवाता है ऐसे जातकों को लॉटरी सट्टे से विपरीत परिस्थिति में विशेष सावधान रहना चाहिए !

वासुकी काल सर्प योग – यह योग तृतीय भाव से नवम भाव के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक सामान्य परिवार में जन्म लेने के बावजूद उच्चतम पद तक पहुँचता है कर्म से अधिक भाग्य मेहरबान रहता है व अशुभफलदायी होने पर भाई बहनों से बैर रखने वाला , नास्तिक व अपयश प्राप्त करने वाला होता है !

शंखपाल काल सर्प योग – यह योग चतुर्थ से दशम के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक को उत्तम नौकरी व्यवसाय , वाहन व घर की प्राप्ति होती है व अशुभफलदायी होने पर गृह क्लेश , व्यापारिक नुक्सान व आय में अस्थिरता होती है !

पद्म कालसर्प योग – यह योग पंचम भाव से एकादश भाव के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक को तेजस्वी संतान व अच्छी आमदनी होती है जबकि अशुभफलदायी होने पर संतानसुख में कमी , प्रेम में असफलता व शिक्षा प्राप्ति में बाधा होती है !

महापद्म काल सर्प योग – यह योग छठे भाव से बारहवे भाग के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक अचानक धन लाभ प्राप्त करता है व शत्रुओं पर भारी रहता है जबकि अशुभफलदायी होने पर ऋण ,रोग ,शत्रु व अधिक खर्च से परेशान रहता है !

तक्षक काल सर्प योग – यह योग सप्तम भाव से लग्न के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक जीवन साथी से प्रेम करने वाला , व्यापारिक साझेदारी से लाभ प्राप्त करने वाला व तीव्र मस्तिष्क वाला होता है जबकि अशुभफलदायी होने पर व्यभिचारी , रोगी व धोखा देने वाला होता है !

कर्कोटक काल सर्प योग – यह योग अष्टम भाव से द्वितीय भाव के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक दीर्घायु , धार्मिक व सफल व्यापारी होता है जबकि अशुभफलदायी होने पर दुर्घटना , रोग व आर्थिक नुकसान देने वाला होता है !

शंखचूड काल सर्प योग – यह योग नवं भाव से तृतीय भाव के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक राज्य से धन , पद व मान प्राप्त करने वाला होता है जबकि अशुभफलदायी होने पर कानूनी बाधा व अपयश का भागी बनाता है !

पातक काल सर्प योग – यह योग दशम से चतुर्थ भाव के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक को माता पिता व परिवार का सुख प्राप्त होता है व अपने क्षेत्र में उच्च पद को प्राप्त करता है जबकि अशुभफलदायी होने पर घर से दूर रहना पड़ता है व नौकरी व व्यवसाय में अस्थिरता का सामना करना पड़ता है !

विषधर काल सर्प योग – यह योग एकादश भाव से पंचम के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक को उत्तम आय , प्रेम में सफलता व श्रेष्ठ विद्या प्राप्त होती है जबकि अशुभफलदायी होने पर विद्याहीन , अनिंद्रा व अपनो से दूर रहने को बाध्य होना पड़ता है !

शेष नाग काल सर्प योग – यह योग द्वादश भाव से छठे भाव के मध्य निर्मित होता है जिसके शुभफलदायी होने पर जातक को जन्मस्थान से दूर सफलता व राजशाही जीवन की प्राप्ति होती है जबकि अशुभफलदायी होने पर गुप्त शत्रुओं से नुक्सान , कानूनी बाधा व फिजूलखर्च की समस्या रहती है !